सहायता

भावना और कार्य से सहायता

किसी भी व्यक्ति, धर्म, आंदोलन या विचार का समर्थन दो तरीकों से किया जा सकता है: आध्यात्मिक और शारीरिक। हमारी भौतिकवादी दुनिया में, लोग अक्सर धन या अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति से की जाने वाली सहायता के बारे में विचार करते हैं। यह कार्य प्रशंसनीय है लेकिन इसमें आध्यात्मिक सहायता के महत्व को कम करके आंक लिया जाता है।

नाज़ रेस्ट होम की इच्छा और अभिलाषा यह रही है कि इसका आधार आध्यात्मिकता और मानव जाति की सेवा की भावना में निहित हो। इसे ध्यान में रखते हुए, हम नाज़ रेस्ट होम के लिए की जाने वाली प्रार्थनाओं और शुभकामनाओं की सराहना करते हैं।

प्रार्थनाओं के अलावा, स्वयंसेवक भी नाज़ रेस्ट होम के कार्य में सहायता देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारत या अन्य देशों से आने वाले स्वयंसेवकों का स्वागत है। विकास के दूसरे चरण में, उनके लिए नाज़ रेस्ट होम में रहने और दिन-प्रतिदिन के कार्यों में सहायता देने के लिए कमरों का निर्माण किया जाएगा। यह सुनिश्चित करने के लिए स्वयंसेवकों के चयन की एक प्रक्रिया होगी कि उनकी सभी ज़रूरतें पूरी हो सकें और उनके सभी सवालों के जवाब दिए जा सकें ताकि उनके यहां आने पर सहज और कुशल तरीके से वे यहां अपना रहन-सहन शुरू कर सकें।

नीचे दी गई विषयवस्तु स्वयंसेवकों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं के महत्व को समझने में सहायता के लिए तैयार की गई है।

दुनिया का हर सजग नागरिक आध्यात्मिक विकास, पारिवारिक जीवन, कार्य और समुदाय के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं के लिए अपने समय को संतुलित करने के प्रयासों के लिए संघर्ष करता है। हमें प्रौद्योगिक विकास को धन्यवाद देना चाहिए कि आज इतने सारे गैजेट्स हमें एक साथ कई कार्य करने में सक्षम बना रहे हैं और हम अस्तित्वशील मनुष्य से क्रियाशील मनुष्य में बदल गए हैं।

इसके साथ ही, भौतिकवाद का व्यापक प्रसार हमारे आध्यात्मिक विकास के लिए एक संकट बन गया है और हमारी सारी ताकत निचोड़ रहा है। आपाधापी भरी इन समस्त गतिविधियों को देखते हुए, हमारे पास एक और चीज के लिए समय कैसे हो सकता है – एक और सामाजिक कार्य के लिए, एक और प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए? हालांकि दूसरों की सेवा करना आरंभ में हमारे पहले से ही व्यस्त जीवन में एक अतिरिक्त काम की तरह लग सकता है, लेकिन जरूरी नहीं है कि यह कोई बहुत बड़ी परियोजना हो। कोई भी दृष्टि, हाव-भाव, शब्द या कार्य जिससे दूसरों की मदद होती हो, वह सेवा के कार्य का उपहार बन सकती है।

सेवा की अवधारणा हममें से अधिकांश लोगों के लिए कोई नई बात नहीं है क्योंकि हमारे पास इस विषय पर अनेक धार्मिक स्रोतों, दार्शनिकों, कवियों, महान विचारकों और मानवतावादियों से प्राप्त ढेर सारी आध्यात्मिक शिक्षाएं मौजूद हैं। हम जानते हैं कि ईसा मसीह, मुहम्मद, कृष्ण, महात्मा गांधी और अब्दुल-बहा जैसे पावन व्यक्तियों ने अपने सम्पूर्ण जीवन में सेवा का उदाहरण प्रस्तुत किया:

“मेरे भक्त सभी प्रकार के कर्म करते हुए भी पूर्णतः मेरा आश्रय ग्रहण करते हैं। मेरी कृपा से वे शाश्वत तथा अविनाशी धाम को प्राप्त करते हैं।” ~ भगवद गीता

स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है दूसरों की सेवा में स्वयं को खो देना। ~ महात्मा गांधी

“क्योंकि मानव-पुत्रभी सेवा कराने नहीं बल्कि सेवा करने और अनेकों की मुक्ति के लिये अपने प्राण देने आया है।” ~ मार्क

“और एक दूसरे के साथ अच्छा व्यवहार करना मत भूलना।” ~ कुरान

“मानवता की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। ” ~ अब्दुल-बहा

यदि हमारे नागरिक एक-दूसरे की मदद करने की कोशिश नहीं करेंगे तो हमारी दुनिया एकता के सूत्र में कैसे बंध सकती है? दुनिया के दुखों को और किस तरह कम किया जा सकता है? यदि हम अपने मानव बंधुओं की सहायता के लिए एक और कदम उठाएंगे तो आप और मेरे जैसे सामान्य लोग ही अंततः परिवर्तन ला सकेंगे और इस धरती को एक बेहतर और शांतिपूर्ण स्थान बना सकेंगे।

बहाई शिक्षाएं सभी लोगों को दूसरों की सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती हैं:

“दूसरों की सेवा करने वाला बहाई एक मोमबत्ती की तरह होता है जो जलती है और अपने चारों ओर के सभी लोगों पर प्रकाश डालती है। मोमबत्ती का सबसे उच्च लक्ष्य है जलना और अंधेरे कक्ष को प्रकाशित कर देना, और हमारी प्रगति एवं पूर्णता का सर्वोच्च शिखर सेवा के क्षेत्र में संपुष्टि प्राप्त करना है…” ~ अब्दुल-बहा

जब आप मानव जाति की सेवा के अपने अभियान पर निकलते हैं तो यहां कुछ सावधानियां दी गई हैं: कृपया अपनी सेवा देते समय यह सुनिश्चित करें कि आप एजेंसियों, व्यक्तियों और परिवारों की सीमारेखाओं का ध्यान रखें। साथ ही, इस बात पर ध्यान केंद्रित करें कि आप वहां क्यों सेवा कर रहे हैं – न कि दूसरों की नीयत पर। कुछ लोग अपनी पहचान बनाने के लिए संस्थाओं में स्वयंसेवा देते हैं या अपनी ऊब मिटाने के लिए और वे निःस्वार्थ भावना से दूसरों की सेवा करने के सार-तत्व को नहीं समझ पाते। स्वयंसेवक के रूप में अपनी किसी भी स्थिति में इस बात का ध्यान रखें ताकि आप हतोत्साहित या नकारात्मक रूप से प्रभावित न हो सकें।

यदि आप दूसरों की सेवा करने के अवसर को प्रदीप्त मुखड़े और दया तथा प्रेम की शुद्ध प्रेरणा के साथ स्वीकार करेंगे तो आप पाएंगे कि आपके द्वारा दिए गए उपहार हजार गुना होकर आपके पास वापस लौट आएंगे।