नाज़ रेस्ट होम की अब तक की कहानी
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वयोवृद्ध लोगों के लिए एक घर का विचार लेस्ली और मेरे लिए कई सालों से एक सपना था। लेकिन मेरी भारत यात्रा के दौरान यह एक संभावना बन गई जहां मैंने सुविधाओं से वंचित बुजुर्गों के लिए एक सुरक्षित स्थान की आवश्यकता महसूस की। बहुत सारी कठिनाइयों का अनुभव करने और जयपुर के आस-पास अनेक जगहों का दौरा करने के बाद, भाग्य ने हमें चबराना गांव भेज दिया जहां हमारी मुलाकात श्री बजरंग मीना से हुई।
जिस दिन से हम उनसे और उनके परिवार से मिले तभी से हमें नाज़ रेस्ट होम (मेरी मां नाज़ बीबी के नाम पर स्थापित) के सपने को साकार करने के मार्ग में आने वाली हर बाधा का समाधान पाने में सहयोग और सहायतामिलती आई है।
उन्होंने हमें अपनी ज़मीन के लिए बहुत ज्यादा मूल्य मांगने वालों से बचाया। ज़मीन के प्रबंधन, निर्माण, पेड़ों की खरीद और रोपाई तथा सिंचाई प्रणाली स्थापित करने में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई है। उन्होंने ठेकेदारों की नियुक्ति और भुगतान कार्य की देखरेख की है, और अब वे उस सड़क के बारे में सुझाव देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं जो जल्द ही नाज़ रेस्ट होम को मुख्य सड़क से जोड़ने वाली है। उनका पूरा परिवार, जिसमें उनके बेटे, बहुएं और पोते-पोती शामिल हैं, नाज़ रेस्ट होम के सपनों को पूरा करने के लिए लगातार उस भूमि पर काम करता आ रहा है। इस परियोजना को पूरे गांव ने अपनाया है क्योंकि वे जानते हैं कि यह उनके ही लाभ के लिए है। वहां के लोगों ने यह कभी कल्पना नहीं की थी कि वे उस रेगिस्तानी क्षेत्र में फल उगा सकते हैं, और अब वे फसल कटने के बाद फलों का आनंद लेंगे।

Nazz Bibi
अभी तक की प्रगतियों का विस्तृत ब्योरा देने के क्रम में: जब हमने ज़मीन खरीदी थी, तो वहां हर साल फ़सलें उगाई जाती थीं। जब पहली फ़सल की कटाई हुई तो बजरंग उसकी बिक्री से मिले पैसे लेकर हमारे पास आए और पूछने लगे कि हमें उसका क्या करना चाहिए। हमने उसे स्कूल को दान देने का विचार किया। लेकिन उनके पास इससे भी एक अच्छा विचार था। उन्होंने सुझाया कि हम नाज़ रेस्ट होम के लोगो के साथ स्कूल की आपूर्ति से भरे बैगपैक बनाएं जिन्हें 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के दिन प्रत्येक छात्र (कई गांवों के) को दिया जाए, जब राजनेता और अभिभावक इस दिन के आयोजन के लिए स्कूल में एकत्रित होंगे। उस दिन औपचारिक प्रस्तुतियां दी गईं, जिसमें बहाई धर्म के बारे में एक वार्ता भी शामिल थी और प्रत्येक छात्र अपना बैगपैक प्राप्त करने के लिए आगे आया। निर्माण कार्य शुरू होने से पहले, चबराना और आस-पास के गांवों को नाज़ रेस्ट होम से परिचित कराने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम था।

ज़मीन के बारे में सबसे पहले जिस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत थी वह थी आवारा गायों को घुसने से रोकने के लिए बाड़ को मज़बूत करना। फिर उस ज़मीन पर बिजली लाने की चुनौती सामने आई, और हमें बताया गया कि इसमें दो साल लग जाएंगे। लेकिन जब सरकार ने विभिन्न पृष्ठभूमियों के वयोवृद्ध लोगों के लिए नाज़ रेस्ट होम के उद्देश्य को समझा तो यह काम मात्र दो सप्ताह में पूरा हो गया। ज़मीन पर आठ हाइड्रो पोल लगाए गए। एक गहरा कुआं भी खोदा गया। फिर एक अस्थायी संरचना बनाने का समय आया जो जरूरत के वक्त किसी व्यक्ति के वहां रहने की दृष्टि से पर्याप्त हो। एक गेट भी बनाया गया जिसे बंद किया जा सके।
निवासियों और आगंतुकों के लिए खूबसूरत उद्यानों की कल्पना को साकार करने के लिए फूल और फलों के 600 पेड़ खरीदे गए और बाड़ के चारों ओर बोगनविलिया लगाए गए। यह अच्छी बात थी कि कुएं से पानी की पर्याप्त आपूर्ति होने लगी और एक प्रभावी सिंचाई प्रणाली की बदौलत वे पौधे अब फल-फूल रहे हैं।
छोटे-से भवन को कंक्रीट और सरिया की मदद से एक बेहतरीन युनिट में बदल दिया गया है। अब इसका उपयोग निवासियों के लिए या बैठकों और कार्यक्रमों के आयोजन के लिए किया जा सकता है क्योंकि इसमें एक बड़ा क्षेत्र और अतिथियों के लिए एक छोटा निजी क्षेत्र, एक रसोई और एक बाथरूम भी है। सीढ़ी के साथ एक नई छत भी बनाई गई है और उसका भी उपयोग किया जा सकता है।
पौधरोपण और निर्माण का चरण 1 अब पूरा हो चुका है। चरण 2 में नाज़ रेस्ट होम का निर्माण शामिल होगा, जिसमें आरंभ में 25 कमरे होंगे। आगे कई चुनौतियां हैं – भवन के लिए उपयुक्त संरचना तय करना, बुजुर्गों के अनुकूल भवन का वास्तविक निर्माण और उद्यानों का विस्तार।